पहले बच्चे एक-दूसरे को धमकाते थे, लेकिन अब इस गतिविधि को भी डिजिटल रूप में बदला जा रहा है। यूके के ऑफ़िस ऑफ़ कम्युनिकेशंस की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, देश में 8 से 17 वर्ष की आयु के 39% बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार हैं।
इस प्रकार की ऑनलाइन बुलिंग को साइबर बुलिंग कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो किसी को धमकाना। कुछ बच्चे बल प्रयोग करते हैं या दूसरे बच्चों को उन्हें परेशान करने, धमकाने या मनोवैज्ञानिक रूप से हावी होने की धमकी देते हैं। बच्चों में ऐसा व्यवहार पूरी दुनिया में पाया जाता है।
शोध के अनुसार, साइबर बुलिंग से पीड़ित 39% बच्चे आमने-सामने (61%) की तुलना में ऑनलाइन (84%) धमकाए जाने की अधिक संभावना रखते हैं। ऑफकॉम के मुताबिक, 56 फीसदी बच्चे टेक्स्ट और टेक्स्ट मैसेज के जरिए साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं। साथ ही 43% बच्चे सोशल मीडिया से नाराज़ थे और 30% बच्चे ऑनलाइन गेमिंग से नाराज़ थे।
ऑफकॉम के मुताबिक, लड़कों की तुलना में लड़कियों को साइबर बुलिंग का खतरा ज्यादा होता है। साथ ही दो-तिहाई माता-पिता चिंतित हैं कि उनका बच्चा ऑनलाइन बदमाशी का शिकार है। ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों के 52% से अधिक माता-पिता को लगता है कि गेमिंग के दौरान उनके बच्चे को परेशान किया जा रहा है। हालांकि, 93% बच्चों का कहना है कि जब वे नाराज होते हैं तो किसी को इसके बारे में बताते हैं।
डॉ राधा मोदगिल का कहना है कि साइबर बुलिंग बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है। वे हर मिनट, हर दिन एक बच्चे को लगातार परेशान कर सकते हैं। डॉ राधा कहती हैं कि साइबर बुलिंग का एक पहलू है गुमनामी। लोग अपनी पहचान छुपाकर किसी को भी परेशान कर सकते हैं। ऐसे में बच्चे को आसानी से डराया जा सकता है।
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