ज्यादातर परिवारों में पति-पत्नी एक थाली में खाना खाते हैं. इस प्रकार यह माना जाता है कि थाली में भोजन करने से आपसी प्रेम बढ़ता है। हालांकि, बड़ों और धर्मशास्त्रियों का कहना है कि पति-पत्नी को एक साथ भोजन नहीं करना चाहिए, लेकिन ऐसा क्यों है? इस बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं था। हालांकि इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। आइए जानते हैं कि पति-पत्नी को एक थाली में क्यों नहीं खाना चाहिए।
पति-पत्नी को एक थाली में खाना नहीं खाना चाहिए
इस बात से कोई इंकार नहीं है कि एक साथ भोजन करने से प्यार बढ़ता है। भीष्म पितामह भी यह बात समझते थे। उनका मानना था कि अपने परिवार के प्रति सभी का कर्तव्य है। यदि पति-पत्नी को अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना है और परिवार में अच्छे संबंध बनाए रखना है तो पति-पत्नी को एक ही थाली में भोजन नहीं करना चाहिए। पत्नी के साथ थाली में भोजन करना अन्य पारिवारिक रिश्तों की तुलना में पत्नी के पति के प्रति प्रेम को सर्वोपरि बनाता है। इससे व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह सही-गलत का फर्क भूल जाता है। यदि पति का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम सर्वोपरि हो जाए तो परिवार में कलह हो सकता है। इसलिए पत्नी के साथ एक थाली में भोजन नहीं करना चाहिए।
भोजन परिवार के साथ करना चाहिए
भीष्म पितामह का मानना है कि परिवार के सभी सदस्यों को बैठकर भोजन करना चाहिए। परिवार में आपसी प्रेम बढ़ता है। साथ ही आत्म-बलिदान और एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावना प्रबल होती है। जिससे परिवार में खुशहाली आती है।
भोजन इस तरह नहीं करना चाहिए
भीष्म पितामह का मानना था कि अगर कोई परोसे गए भोजन की थाली पर कूदता है, तो कीचड़ भी उतना ही दूषित होता है। इसे जानवरों को खिलाना चाहिए। साथ ही भजन की थाली को कोई पैर लगाके भी जाये तो ऐसे भोजन को भी त्याग देना चाहिए। क्योंकि ऐसा भोजन गरीबी लाता है।