कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सांसों के जरिए दी वाली वैक्सीन तैयार की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि नई इनहेल्ड वैक्सीन कोरोना के सभी वैरिएंट्स पर असरदार साबित होगी। जर्नल सेल में पब्लिश रिसर्च रिपोर्ट कहती है। यह खास तरह की वैक्सीन है जिसे सांस के जरिए लिया जाता है। इसलिए इसे एरोसॉल वैक्सीन भी कहते हैं। आए दिन कोरोना के नए वेरिएंट्स के बढ़ते खतरों के बीच यह वैक्सीन काफी असरदार साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना वायरस से बचाने के लिए यह सीधे तौर पर फेफड़ों और सांस की नली को टार्गेट करती है। इसलिए यह असरदार साबित हो सकती है।
कोरोना से लड़ने वाली ज्यादातर वैक्सीन को नसों के जरिए दिया जा रहा है। वहीं इनहेल्ड वैक्सीन लेने के लिए इंसान को मुंह के जरिए सांसों को अंदर खींचना होगा। तभी वैक्सीन शरीर में पहुंच पाएगी। शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोनावायरस मुंह और सांस नली के जरिए ही शरीर में पहुंचता है। वैक्सीन इसी हिस्से में अपना असर दिखाती है। इस वैक्सीन का सीधा असर फेफड़ों और सांस की नली पर पड़ता है। इस तरह कोरोना से बचाने में मदद करती है।
WION की रिपोर्ट के मुताबिक इसे तैयार करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है। ज्यादातर वैक्सीन कोरोना के उस स्पाइक प्रोटीन को टार्गेट करती हैं जिसके जरिए यह शरीर में एंट्री लेता है। वेरिएंट्स के बदलने पर वैक्सीन कम असरदार साबित हो सकती है। लेकिन हमारी वैक्सीन वायरस के अलग-अलग हिस्सों को टार्गेट करती है। इसलिए नए वेरिएंट्स पर भी असरदार है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस वैक्सीन से खास तरह की इम्यूनिटी डेवलप होती है जो काफी हद तक कोरोना से सुरक्षा देती है।
शोधकर्ताओं का कहना है अगर मरीज को नई इनहेल्ड वैक्सीन दी जाती है तो बहुत कम मात्रा में इसकी जरूरत पड़ेगी। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जो वैक्सीन सुई के जरिए दी जा रही है उसका मात्र एक फीसदी ही इंसान को देना होगा। यह 1 फीसदी डोज ही काफी होगी इससे वैक्सीन ज्यादा लोगों को दी जा सकेगी। शोधकर्ता प्रोफेसर ब्रायन लिची का कहना है। इनहेल्ड वैक्सीन एक गेमचेंजर साबित हो सकती हे।