लंबी अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष यात्रियों पर अलग तरह के प्रभाव होते हैं। उन्हें सेहत संबंधी कई समस्याओं का सामना करना होता है। पिछले कई सालों से अंतरिक्ष यात्री ज्यादा लंबे समय तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में रहने लगे है। और उनकी सेहत पर पड़ रहे प्रभाव का भी अध्ययन किया जा रहा है। नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क पर पड़ रहे प्रभाव पर नया खुलासा किया है। 12 अंतरिक्ष यात्रियों पर हुए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने पर मस्तिष्क की ‘वायरिंग’ में बदलाव हो जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें मस्तिष्क में सफेद पदार्थ, जो उसके शरीर के दूसरे हिस्सों से संचार के लिए जिम्मेदार है, में सूक्ष्मसंरचनात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। शोधकर्ताओं को ये आंकड़े डिफ्यूजन मैग्नेटिक रेजोनैस इमेजिंग स्कैन से मिले हैं ये स्कैन यात्रियों के अंतरिक्ष जाने से ठीक पहले और आने के ठीक बाद में लिए गए थे। उनकी यात्रा 172 दिन तक चली थी।
इसके अलावा यात्रियों के आने के साथ महीने बाद भी स्कैन लिए गए थे जिसमें पाया गया था कि कुछ बदलाव से वापसी सी भी होती दिख रही है, जबकि कुछ अब भी दिखाई दे रहे थे। टीम ने विशेष तौर पर संवेदी और प्रेरण कार्यों संबंधी तंत्रिका क्षेत्र में बदलाव पाए। उन्होंने यह भी पाया कि इसका संबंध अंतरिक्ष यात्रियों के सूक्ष्मगुरुत्व के जीवन में अनुकूलन प्रक्रिया से हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस धारणा को देखते हुए कि अंतरिक्ष के चरम वातावरण में मस्तिष्क के कार्य और शरीर पर नियंत्रण करने वाली क्रियाओं पर खासा असर होता है, इन क्षेत्र के संवेदीप्रेरण कार्यों में बदलाव देखने की उम्मीद की जा रही थी। यह पहली बार है जब फाइबर ट्रैक्टोग्राफी नाम की ब्रेन इमेजिंग तकनीक का उपयोग अंतिरक्ष में होने वाले प्रभावों को लेकर किया गया है।cब्रेन इमेजिंग तकनीक में न्यूरॉन क्षेत्र की त्रिआयामी तस्वीर ली जाती है। जिससे मस्तिष्क के तारों की व्यवस्था का पता चलता है। अंतरिक्ष यात्रियों के मस्तिष्क में पहले भी बदलाव देखने को मिले हैं, लेकिन फाइबर ट्रैक्टोग्राफी के जरिए इस अध्ययन से न्यूरॉन के संपर्कों को बेहतर तरह से जाना जा सका और उनकी स्थिति के बदलाव को भी।
शोधकर्ताओं ने साफ किया कि उन्हें पहले दिमाग में संरचनात्मक बदलाव लग रहे थे लेकिन उन्होंने केवल आकार में बदलाव देखा इससे उन्हें चीजों को दूसरे नजरिए से देखने का मौका मिला। दिमाग के तारों में इस तरह के बदलाव नई बात नहीं हैं। दरअसल यह नमनीयता या प्लास्टिसिटी तब भी आती है जब हम कोई नई क्षमता अर्जित करते हैं, नई यादें बना रहे होते हैं या ऐसा ही कुछ और कर रहे होते हैं।
फिलहाल शोधकर्ताओं को यह स्पष्ट रूप से पता नहीं चल सका है कि अंतरिक्ष में रहने से बदलाव की वजह से हुए बदलाव का क्या असर होगा। लेकिन यह तय है कि अंतरिक्ष निर्दयी वातावरण में हमारा शरीर ढलने का प्रयास करता है। पिछले अध्ययनों ने सुझाया था कि इससे बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है और दिमाग के कुछ हिस्सों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा ऐसा लगता है कि अंतरिक्ष में महिला और पुरुष पर अंतरिक्ष का अलग अलग प्रभाव पड़ता है। फ्रंटियर्स इन न्यूरल सर्किट में प्रकाशित अध्ययन पर शोधकर्ताओं का मानना है कि यह एक बड़ी पहेली में नई जानकारी देने वाला अध्ययन है।
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