छोटी बड़ी नौकरी करके रोजी-रोटी कमाने वाली लोग छुट्टी पर रहने के लिए तरह-तरह के बहाने पेश करते हैं। किसी भी कीमत पर छुट्टी लेने के लिए दिए जाने वाले काल्पनिक बहाने भी एक मानसिक बीमारी के रूप में देखे गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को बर्न आउट नाम दिया है।
इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज लिस्ट के अनुसार बर्नआउट सिंड्रोम एक प्रकार की मानसिक समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, निजी कंपनीओ में सप्ताह में 50 घंटे से अधिक काम करवाया जाता है, इसलिए बहाने बनाकर छुट्टी लेने की संख्या बहुत अधिक देखने को मिली है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा काम पर बढ़ते तनाव के कारण देखने को मिलता है।
इसी बहाने से नौकरी करने वाले लोको का मकसद कुछ समय के लिए काम से बचना है। अक्सर ऐसा करने वालों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छोटी और बड़ी दोनों तरह की नौकरियों में 42% भारतीय डिप्रेशन और ऐन्क्ज़ाइटी से पीड़ित हैं। इसलिए काम से घर आने के बाद भी अपने परिवार के साथ रहते हुए भी उन्हें अच्छा नहीं लगता है। इसलिए भले ही वे परिवार के साथ हैं, वे बात नहीं कर सकते हैं या वास्तव में समय नहीं बिता सकते हैं।
इतना ही नहीं दोस्तों से मिलना-जुलना भी कम हो जाता है। अंततः उनके सामाजिक संबंध भी कम हो जाते हैं। वर्क सिंड्रोम के तीन लक्षण होते हैं जिनसे इसकी पहचान की जा सकती है। मानसिक थकान और ऊर्जा की कमी महसूस होती है। ऑफिस में पूरे जोश के साथ काम करने में परेशानी होती है। बार-बार थकान महसूस होती है। यह न केवल काम करते समय दूसरों के लिए नकारात्मक भावना पैदा करता है, बल्कि उनके कार्य करने की क्षमता को भी कम करता है।
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