दही को संस्कृत में दधि, पयसी, मंगव्य, अनेतर, क्षरज, दिग्ध और तक्रजन्य कहते हैं। दही के विषय में सभी जानते हैं। यह दूध को जमाकर बनाया जाता है। दही स्वाद में मीठा, मीठा-खट्टा होता है। यह स्वभाव से शीतल होता है।
दही अम्ल, भारी, वात, मलरोधक, मूत्रल, बलकारक, कफनाशक, रुचि वर्धक, खांसी, श्वास, पीनस व ज्वर में लाभदायक है। यह दूसरे दर्जे में सर्द और तर है तथा मक्खन निकाले जाने पर सर्द और खुश्क हो जाता है। यह वीर्यवर्धक, कामशक्ति को बढ़ाने वाला तथा अतिसार में लाभदायक है ।
दही के प्रकार – दही पांच प्रकार का होता है – 1. मंद दही, 2. मधुर दही, 3 . मधुर खट्टा दही. 4. अधिक खट्टा दही और 5 अत्यन्त खट्टा दही। दही के गुणों का वर्णन इस प्रकार है जो दूध जमकर कुछ गाढ़ा हो गया हो, परन्तु उसमें मीठापन व खट्टापन कुछ न आया हो, उसे मन्द दही कहते हैं। मन्द दही मलमूत्र अधिक लाता है तथा दाह पैदा करने वाला होता है।
जो दूध जमकर गाढ़ा हो गया हो और उसमें मीठापन आ गया। हो परन्तु खट्टापन न आया हो, मधुर दही कहलाता है। यह दही वीर्यवर्धक, भेदजनक, कफकारी, वातनाशक, पचने में मीठा और रक्तपित्त का नाश करने वाला होता है
दही- जो दूध जमकर गाढ़ा हो गया हो और उसमें मीठापन के साथ खट्टापन भी आ गया हो, मीठा-खट्टा दही कहलाता है। यह भी करीब करीब मीठे दही के गुणों के समान होता है। विशेषकर यह वायुनाशक होता है।
खट्टा दही दीपन है। रक्त पित्त और कफ को उत्पन्न करने वाला होता है। वह दही, जो खाने के साथ ही दांतों को खट्टा करके शरीर के रोयें खड़े कर दे, जलन पैदा कर दे, ऐसा दही रुधिर विकार, वात्त और पित्त को पैदा करने वाला होता है।
गाय का दही अत्यन्त पवित्र, बलकारक, स्वादिष्ट, रुचिकारक,अग्निवर्धक, पौष्टिक और कफनाशक होता है। सब पशुओं के दही में गाय का दही अधिक गुणकारी होता है। यह खांसी, शीतज्वर, विषज्वर, बवासीर इत्यादि में फायदेमंद होता है।
भैंस का दही-भैंस का दही रक्तपित्त को कुपित करने वाला, वीर्यवर्धक, कफकारक, भारी, बलकारक, पित्त, वात तथा भ्रम को दूर करता है। बकरी का दही-बकरी का दही गरम, वीर्यवर्धक, पौष्टिक, बलवर्धक, कान्तिकारक, कफ, पित्त, वातनाशक, बवासीर, श्वास, खांसी और अतिसार के रोग में फायदेमंद होता है।
बिना नियम के दही खाने से ज्वर, रक्तपित्त, विसर्प, कुष्ठ, पाण्डु, कामला इत्यादि रोग हो जाते हैं। दही में से निकले हुए पानी का लेप करने से शरीर से दाह मिटता है। पके हुए चावलों को दही में मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है।
आंवला, पंवार के बीज और कत्थे को दही के साथ पीसकर लेप करने से दाद और खुजली मिटती है।दही की मलाई स्वादिष्ट, भारी, वीर्यवर्धक, वातनाशक, वस्तिरोग नाशक और पित्त-कफ को बढ़ाने वाली होती है।
दही में त्रिकुट का चूर्ण, सेंधा नमक और राई का चूर्ण मिलाकर हेमन्त और शिशिर ऋतु में खाने से कफ और वात रोग दूर होते हैं। यह शरीर को मजबूत और अंगों में कान्ति पैदा करता है। दही अथवा मट्ठे का लगातार सेवन करते रहने से बवासी से खून बहना बन्द हो जाता है।
दही के तोड़ में थूक मिलाकर अंजन करने से रतौंधी मिटती है। दही में दो माशे कतीरा गोंद मिलाकर पिलाने से जमालगोटे से पैदा दस्त बन्द हो जाते हैं।