हिन्दू धर्म अनुसार यह 8 लोग आज भी है जीवित, जाने उनके पीछे का रहस्य

हिंदू धर्म के अनुसार जो हजारों सालों से इस धरती में विद्यमान हैं, उन्हें ही चिरंजीवी कहा जाता है। आज हम आपको सात चिरंजीवी के बारे में जानकारी देंगे।

1. परशुराम:

भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला है।

2. हनुमान:

इन्हे कौन नही जानता | कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता श्री बालाजी महाराज पवन पुत्र थे | इनके पिता का नाम केसरी और माँ अंजना थी | परम राम भक्त और लक्ष्मण के प्राण दाता श्री हनुमान जी असुरो और राक्षको के संगारक थे |

3.विभीषण:

राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।

4. कृपाचार्य:

कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। कृप और कृपि का जन्म महर्षि गौतम के पुत्र शरद्वान के वीर्य के सरकंडे पर गिरने के कारण हुआ था।

5. राजा बलि:

शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।

6. अश्वत्थामा:

महावीर अश्वथामा कौरवो के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। इनके माथे पर एक अमरमणि है। इसीलिए वह अमर हैं। महाभारत मैं ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कालांतर तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे। इसीलिए अश्वत्थामा सात चिरन्जीवियों या अमर लोगो में गिने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है।

7. महर्षि वेदव्यास:

ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया।

8. ऋषि मार्कण्डेय:

भगवान शिव के परम भक्त थे ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्धि किया। महामृत्युंजय मंत्र का जाप मौत को दूर भगाने लिए किया जाता है। चुंकि ऋषि मार्कण्डेय ने इस मन्त्र को सिद्ध किया था इसलिए इन सातो के साथ साथ ऋषि मार्कण्डेय के नित्य स्मरण के लिए भी कहा जाता है।