सहदेव: पाण्डु पत्नी माद्री के जुड़वा पुत्र में से एक सहदेव हैं। इनके भाई का नाम नकुल है। यह भी अपने पिता और भाई की तरह पशुपालन शास्त्र और चिकित्सा में दक्ष थे और अज्ञातवास के समय विराट के यहां इन्होंने भी पशुओं की देखरेख का काम किया था। ये गाय चराने का कार्य भी करते थे।महाभारत युद्ध में सहदेव के अश्व के रथ के अश्व तितर के रंग के थे और उनके रथ पर हंस का ध्वज लहराता था। माना जाता है कि मृत्यु के समय उनकी उम्र 105 वर्ष की थी। सहदेव अच्छे रथ यौद्धा माने जाते हैं।
सहदेव ने द्रोणाचार्य से ही धर्म, शास्त्र, चिक्तिसा के अलावा ज्योतिष विद्या सीखी थी। सहदेव भविष्य में होने वाली हर घटना को पहले से ही जान लेते थे। वे जानते थे कि महाभारत होने वाली है और कौन किसको मारेगा और कौन विजयी होगा। लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे शाप दिया था कि अगर वह इस बारे में लोगों को बताएगा तो उसकी मृत्य हो जाएगी। सहदेव के धर्मपिता पाण्डु बहुत ही ज्ञानी थे। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके पांचों बेटे उनके मृत शरीर को खाएं ताकि उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया है वह उनके पुत्रों में चला जाए! सिर्फ सहदेव ने ही हिम्मत दिखाकर पिता की इच्छा का पालन किया। उन्होंने पिता के मस्तिष्क के तीन हिस्से खाए। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने से वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही वे भविष्य को देखने लगे। इस तरह वे त्रिकालज्ञ बन गए।
वेद व्यास द्वारा लिखित महाभारत के अनुसार पाण्डवों में से सहदेव ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें ज्योतिषशास्त्र का बहुत उत्तम ज्ञान था। उन्हें आने वाले समय में होने वाली सभी घटनाओं के बारे में पहले ही ज्ञात हो जाता था। केवल महाभारत के युद्ध के विषय में ही नहीं बल्कि उन्हें हर अप्रिय घटना के बारे में पहले से ही पता था लेकिन प्रश्न ये उठता है कि सब कुछ जानते हुए भी सहदेव ने अप्रिय घटनाओं को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। वो चाहते तो सब कुछ पल भर में रोक सकते थे या सभी को परिणाम बताकर सजग कर सकते थे लेकिन इस सबसे परे वो हमेशा मौन ही रहे। इसका सबसे बड़ा कारण था श्रीकृष्ण द्वारा सहदेव से लिया गया वचन। जैसा की हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण पूरे संसार के ज्ञान को खुद में समेटे हुए हैं। उन्हें हर जीव और विश्व में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी पहले से थी।लेकिन उन्होंने सहदेव से वचन लेते हुए कहा ‘ वत्स तुम अपनी शक्तियों का प्रयोग किसी के कर्मों को निर्धारित करने के लिए नहीं कर सकते। अपने बुद्धि और विवेक द्वारा हर एक चरित्र को अपने फैसले लेने का अधिकार स्वयं है इसलिए यदि तुमने कभी भी अपने इस कौशल पर अभिमान किया, तो पलभर में तुम्हारे मस्तिष्क के दो टुकड़े हो जाएंगे’। इस प्रकार का प्रसंग भागवत पुराण में भी पढ़ने को मिलता है जिसमें श्रीकृष्ण और सहदेव के बीच के संवादों को बखूबी प्रस्तुत किया गया है।