लहसुन को संस्कृत में लशुन, महाकन्द, अरिष्ट, रसीन, महौषधि, म्लेच्छाकन्द, उग्रगन्ध इत्यादि कहते हैं। लहसुन एक मशहूर वस्तु है, जो भारतवर्ष में साग-तरकारी के साथ मसाले के रूप में खाने के काम में ली जाती है। इसकी खेती भारतवर्ष में की जाती है। इसका पौधा प्याज़ के पौधे की तरह होता है । इसकी गठान जमीन के अन्दर प्याज़ की गठन की तरह ही लगती है।
आयुर्वेदिक मत से लहसुन पांच रसों से युक्त होता है। इसकी जड़ चरपरी, पत्ते कड़वे, नाल कसैली, नाल के अगले भाग में लवण रस और बीजों में मधुर रस रहता है। इसमें अम्लरस नहीं होता है। लहसुन स्वभाव से ऊष्ण होता है।
यह पौष्टिक, कामोद्दीपक, स्निग्ध, ऊष्ण, पाचक सारक, टूटी हड्डी को जोड़ने वाला, बलकारक, कांतिवर्धक, मस्तिष्क को शक्ति देने वाला, नेत्रों को हितकारी और रसायन होता है। यह हृदयरोग, जीर्णज्वर, कब्जियत, वायुगोला, खांसी, सूजन,बवासीर, कोढ़, मन्दाग्नि, कृमि, वात और कफ रोगों में फायदेमंद होता है ।
लहसुन की लुगदी और उससे सिद्ध किये हुए तेल का सेवन करने से और उसकी मालिश करने से वात के समस्त रोग मिटते हैं। विषमज्वर में भी इसका सेवन करने से लाभ होता है। लहसुन के एक तोला रस में गाय का एक तोला घी मिलाकर पीने से आमवात मिटता है।
लहसुन और अमचूर को पीसकर, लगाने से बिच्छू का विष उतरता है। लहसुन को सिरके में पीसकर कुत्ते की काटी हुई जगह पर लगाने और लहसुन का सेवन करने से पागल कुत्ते का विष उतरता है । लहसुन का पाक बनाकर खाने से लकवा में लाभ होता है। लहसुन के तेल की मालिश करने से गठिया और त्वचा की शून्यता मिटती है। लहसुन की कली को पीसकर, कनपटी पर लगाने से आधाशीशी और दूसरे प्रकार के मस्तष्क रोग मिट् जाते हैं।
राई के तेल में लहसुन की कलियों को तलकर, उस तेल का मर्दन करने से खुजली और दूसरे प्रकार के चर्मरोग मिटते हैं। लहसुन के रस को गरम जल के साथ लेने से दमे में लाभ होता है। बच्चों को इसकी छिली हुई कलियों की माला पहनाने से और बच्चों की छाती पर इसके तेल की मालिश करने से हूपिंग कफ और दूसरी खांसी में लाभ होता है।
लहसुन की दो कलियों को सवा तोले तिल्ली के तेल में तलकर, उसकी एक-दो बूंद कान में टपकाने से कुछ दिनों में कान का बहरापन मिट जाता है। लहसुन की कली को नमक के साथ पीसकर, उसका पुल्टिस बांधने से चोट और मरोड़ में लाभ होता है।
इसकी पुल्टिस बांधने से गठिया में भी लाभ होता है। जिन फोड़ों में कीड़े पड़ जाते हैं, उस पर लहसुन लगाने से वे अच्छे हो जाते हैं। लहसुन को सिरके में भिगोकर खाने से दुखते हुए गले की ढीली पड़ी हुई रगों का संकोचन होता है और शब्दवाहिनी नाड़ियों का ढीलापन मिट जाता है।
लहसुन का प्रयोग करने से बार-बार आने वाला ज्वर छूट जाता है। शीत ज्वर के शीत को मिटाने के लिए इसके तेल की मात्रा दी जाती है ।रोज लहसुन का सेवन करने वालों को सर्दी-जुकाम कम होता है। ऐसे लोग विक्स जैसी प्लेसबो दवाओं को खाने वालों से 63% तक कम बीमार पड़ते हैं
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