शांतनु
राजा भरत की परंपरा में आगे चलते कुरू वंश में एक महान राजा का जन्म हुआ। उसका नाम था शांतनु। हस्तिनापूर के इस सम्राट की कथा भी मनोरंजक है। आज इसे हम कुछ विस्तार से पढेंगे ताकि आगे आनेवाले पात्रों से हमारा परिचय हो जाए। ये पात्र हैं भीष्म पितामह, पांडु और उसके पुत्र पांडव, धृतराष्ट और उसके पुत्र कौरव और महाभारत के युध्द में अहम किरदार निभाने वाले श्रीकृष्ण। इस तरह हम देख सकते हैं कि शांतनु से ही महाभारत की शुरूआत हो जाती है। हस्तिनापूर के महानतम राजाओ में थे एक राजा शांतनु। अपनी पहली पत्नी गंगा से उन्हे एक पुत्र प्राप्त हुआ था जो योगी और ज्ञानी भीष्म के नाम से प्रसिध्द हुआ।
सत्यवती
महाभारत की शुरुआत राजा शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से होती है। सत्यवती के बारे में पढ़ने पर पता चलता है कि यह एक ऐसी महिला थीं जिसके कारण भीष्म को ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। कहते हैं कि सत्यवती ही एक प्रमुख कारण थी जिसके चलते हस्तिनापुर की गद्दी से कुरुवंश नष्ट हो गया। यदि भीष्म सौगंध नहीं खाते तो सत्यवती के पराशर से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास के 3 पुत्र पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर हस्तिनापुर के शासक नहीं होते या यह कहें कि उनका जन्म ही नहीं होता। तब इतिहास ही कुछ और होता।
पांडु
शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अम्बालिका से पांडु का जन्म हुआ। पांडु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ। श्राप के चलते दोनों से ही उनको कोई पुत्र नहीं हुआ तब कुंती और माद्री ने मंत्रशक्ति के बल से देवताओं का आह्वान किया और 5 पुत्रों को जन्म दिया। कुंती ने विवाह पूर्व भी एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम कर्ण था। इस तरह दोनों के मिलाकर 6 पुत्र थे।
कुंती
गांधारी के बाद कुंती महाभारत के पटल पर एक शक्तिशाली महिला बनकर हस्तिनापुर में प्रवेश करती है। कुंती और माद्री दोनों ही पांडु की पत्नियां थीं। यदि पांडु को शाप नहीं लगता तो उनका कोई पुत्र होता, जो गद्दी पर बैठता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब पांडु के आग्रह पर कुंती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार माद्री ने भी देवताओं का आवाहन किया। तब कुंती को 3 और माद्री को 2 पुत्र प्राप्त हुए जिनमें युधिष्ठिर सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे भीम और अर्जुन तथा माद्री के पुत्र थे नकुल व सहदेव। कुंती ने धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया था तो माद्री ने अश्विन कुमारों का।
इससे पहले कुंती ने विवाहपूर्व सूर्य का आह्वान कर कर्ण को जन्म दिया था और उसे एक नदी में बहा दिया था। एक शाप के चलते जब पांडु का देहांत हो गया तो माद्री पांडु की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सकी और उनके साथ सती हो गई। ऐसे में कुंती अकेली 5 पुत्रों के साथ जंगल में रह गई। अब उसके सामने भविष्य की चुनौतियां थीं। ऐसे में कुंती ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुना। 5 पुत्रों के भविष्य और पालन-पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख किया, जो कि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंती ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितैषियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया। सभी के सहयोग से कुंती आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई। कुंती और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा। राजमहल में कुंती का सामना गांधारी से भी हुआ। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं, तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी।
माद्री
माद्री महाभारत की एक पात्र है। इन्हें ‘मद्रसुता’ भी कहा जाता था। महीपाल शल्य की बहन माद्री का विवाह पाण्डु के साथ हुआ था। यह उनकी दूसरी रानी थी। पंजाब का, रावी और चिनाब के बीच का, भूभाग ही ‘मद्रदेश’ है। माद्री का वास्तविक नाम नहीं मिलता। माद्री का अर्थ है- ‘मद्र देश की’। यह बड़ी सुन्दरी थी। इसको प्राप्त करने के लिए शल्य के पास स्वयं भीष्म गये थे। मद्रराज के यहाँ बिना शुल्क लिये बेटी ब्याहने का दस्तूर नहीं था।
इस बात को शल्य ने साफ़-साफ़ कह दिया और भीष्म ने भी उनके आचरण को बुरा नहीं बतलाया, उलटे प्रशंसा ही की है। इसके लिए वे पहले से ही तैयार भी थे। तभी तो उनकी भेंट करने को तरह-तरह की पचासों चीज़ें साथ ले गये थे। भीष्म ने उन्हें बहुत-सा सुवर्ण, आभूषण, रत्न, हाथी- घोड़े, मणि – मोती और वस्त्र आदि देकर माद्री को हस्तिनापुर ले गये थे। वहीं पर विवाह-संस्कार हुआ था। कुछ समय माद्री ने बड़ा सुख पाया। इसके बाद एक दुर्घटना हो गई। राजा पाण्डु ने वन में रमण करते हुए मृग के जोड़े पर बाण छोड़ दिया। असल में वह किन्दम नाम का मुनि था, जो मृग बनकर अपनी स्त्री के साथ विहार कर रहा था। उसने मरते समय पाण्डु को यह शाप दे दिया कि जिस समय तुम स्त्री से सहवास करना चाहोगे उसी समय मर जाओगे।
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