हनुमान जी का एकमुखी, पंचमुखी और एकादशमुखी स्वरूप सारे जगत में प्रसिद्ध है । भगवान शंकर की तरह इन्हें भी पंचमुखी कहा जाता है । इस रूप में हनुमान जी मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को पुष्य नक्षत्र में सिंह लग्न तथा मंगल के दिन अवतरित हुए थे । भगवान के इस अवतार के पूजन से ऊर्जा मिलती है साथ ही इनकी आराधना से बुद्धि, बल, कीर्ति, धीरता, निर्भीकता, आरोग्य, वाक् शक्ति आदि गुण प्रसाद की तरह प्राप्त होते हैं ।
इनके पूर्व की ओर का मुख वानर का है जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्यो के तुल्य है उसकी भृकुटियां चढ़ी हुई है । पूर्वी मुख वाले हनुमान का स्मरण करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है ।
इनका पश्चिम दिशा वाला मुख गरुण का प्रतीक है । जिसकी चोंच टेढ़ी और अत्यंत पुष्ट है । यह सभी नामों को परास्त करने वाला तथा विष एवं भूत-प्रेत आदि का उच्छेदक है ।
यदि हनुमान जी के उत्तर मुख यानी शूकर की आराधना की जाए, तो भक्तों के ज्वर आदि रोग दूर हो जाते हैं । यह मुख आकाश के सदृश कृष्ण वर्ण तथा पाताल चारी, जीवो, सिंह, बेताल आदि का प्रतीक है । अगर हनुमान जी के उत्तर मुख का पूजन किया जाए, तो भक्तों को संपत्ति मिलती है ।
पंचमुखी हनुमान जी के दक्षिण मुखावतार भगवान नृसिंह भक्त राज प्रहलाद की रक्षा के लिए स्तंभ से प्रकट हुए थे और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था । हनुमान जी का दक्षिण दिशा की ओर का मुख नृसिंह भगवान के मुख की तरह बड़ा ही विशिष्ट है । उनके शरीर की कांति बड़ी तीक्ष्ण और भयानक होने पर भी भक्तों के जन्म-मरण आदि के भय को दूर करने वाली है ।
इसी प्रकार हनुमान जी का उर्ध्वामुख हय रूप माना जाता है । इनका हय ग्रीव अवतार श्रुतियो का उद्धार करने के लिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट था । शास्त्रों में कहा जाता है कि उस दौरान प्रभु की गर्दन और मुखाकृति घोड़े जैसी थी । उन्होंने वेदों का उद्धार किया था ।
असल में हनुमान जी के ऊपर का मुख, अश्वनी कुमार देवों तथा भगवान हय ग्रीव के जैसा घोड़े की आकृति वाला भयंकर तथा दानवो का नाश करने वाला है । ऐसा माना जाता है कि इसी अश्वमुख वाले हनुमान ने भयंकर युद्ध में तारकासुर नाम के राक्षस का संहार किया था।