जोधपुर में ओम बन्ना का मंदिर अन्य सभी मंदिरों से बिल्कुल् ही अलग है. ओम बन्ना मंदिर की विशेषता है कि इसमें पूजा की जाने वाले भगवान की मूर्ति नहीं है बल्कि एक मोटरसाइकिल और उसके साथ ही ओम सिंह राठौर की फोटो रखी हुई है, लोग उन्हीं की पूजा करते हैं. इस मोटरसाइकिल के बारे में कहा जाता है कि इसी मोटरसाइकिल से 1991 में ओम सिंह का एक्सिडेंट हो गया था. एक्सिडेंट में ओम सिंह की तत्काल मौत हो गई. लोकल पुलिस मोटरसाइकिल को पुलिस थाने लेकर चली गई लेकिन दूसरे दिन मोटरसाइकिल वापस एक्सिडेंट वाली जगह पर पहुंच गई.
करनी माता का यह मंदिर जो बीकानेर (राजस्थान) में स्थित है, बहुत ही अनोखा मंदिर है। इस मंदिर में रहते हैं लगभग 20 हजार काले चूहे। लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। करणी देवी, जिन्हें दुर्गा का अवतार माना जाता है, के मंदिर को ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है।
यहां चूहों को काबा कहते हैं और इन्हें बाकायदा भोजन कराया जाता है और इनकी सुरक्षा की जाती है। यहां इतने चूहे हैं कि आपको पांव घिसटकर चलना पड़ेगा। अगर एक चूहा भी आपके पैरों के नीचे आ गया तो अपशकुन माना जाता है। कहा जाता है कि एक चूहा भी आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो आप पर देवी की कृपा हो गई समझो और यदि आपने सफेद चूहा देख लिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हुई समझो।
तनोट माँ (तन्नोट माँ) का मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं । तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही एक रूप कहा हैं , हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है , वहाँ स्थापित है ।भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि.सं. 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित कि थी । इसी बीच भाटी तथा जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी पूजते आ रहे है । सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था। तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि शत्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था।
दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।
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