शिलाजीत पत्थरों का मद होता है। ज्येष्ठ, आषाढ़ के महीने में जब पर्वत सूर्य-किरणों से अत्यन्त तप्त होकर लाख के समान प्रकाशमान रस की शिलाओं से बहाते हैं, तब वह रस एकत्रित होकर शिलाजीत के नाम से प्रसिद्ध होता है।
यह शिलाजीत 4 प्रकार का होता है – सुवर्ण, रजत, ताम्र और लोह। सुवर्ण शिलाजीत जपा के फूल के समान लालवर्ण का होता है, रजत शिलाजीत सफ़ेद रंग का होता है, ताम्र शिलाजीत मोर की गर्दन के रंग का होता है और लोह शिलाजीत काले रंग का होता है।
शिलाजीत के अन्दर मिलावट बहुत होती है। असली शिलाजीत बड़ी मुश्किल से मिलता है। शिलाजीत एक महंगी औषधि है। नक्क से व मिलावट करने वालों से शिलाजीत को परखकर या साधारण परीक्षाएं लेकर शिलाजीत के जरा से टुकड़े को अंगारे पर रखते ही अगर वह लिंगेन्द्रिय खरीदना चाहिए।
तरह खड़ा हो जाये, तो उस शिलाजीत को असली समझना चाहिए। शिलाजीत को जरा सा लेकर अंगारे पर डालने से अगर धुआं न उठे, तो शिलाजीत को एक तिनके की नोक में लगाकर पानी के कटोरे में डाल चाहिए।
अगर वह सबका सब तार-तार होकर जल के नीचे बैठ जाये, तो उसे उत्तम समझना चाहिए। शिलाजीत को नाक से सूंघने पर अगर उसमें गौमूत्र के समान गन्ध अ और वह रंग में काला तथा पतले गोंद के समान हो, वजन में हल्का और चिकना तो उसे उत्तम समझना चाहिए।
शिलाजीत स्वाद में कड़वा, चरपरा, कसैला तथा स्वभाव से ग होता है। यह कटुपाकी, रसायन, मोगवाही, कफ, भेद, पथरी, मधुमेह, क्षय, मूत्रकृच बवासीर, पाण्डुरोग, उन्माद, सूजन, कुष्ठ, कृमिरोग व उदररोग को नष्ट करता रस, उपरस, पारा, रत्न और लोह में जो गुण होते हैं, वे ही सब गुण शिलाजीत में होते हैं;
क्योंकि शिलाजीत धातुओं का क्षार होता है, जो गरमी पाकर पहाड़ों पर आता शिलाजीत बुढ़ापे और मृत्यु को जीतने वाला, वमन, कम्पवायु, हर प्रका के प्रमेह, पथरी, मधुमेह, सुजाक, कफक्षय, श्वास, वात, बवासीर, पीलिया, मिर उन्माद, पागलपन, सूजन, कोढ़ और कृमिरोग को नष्ट करने वाला होता है।
शिलाज मधुप्रमेह में एक चमत्कारिक औषधि मानी जाती है । असाध्य समझा जाने वाला मधुमेह का रोगी अगर उचित मात्रा में नियमपूर्वक 400 तोले शिलाजीत (लगभग 5 वर्ष में) खाये, तो उसकी पूरी शुगर व शुगर पैदा होने वाले अंश मिट जाते हैं।
शुगर हटने के साथ ही मनुष्य निरोगी हो जाता है। क्षुद्र पचमूल के क्वाथ में दूध डालकर, उसमें शुद्ध शिलाजीत 8 रत्ती की मात्रा में मिलाकर पीने से वातगुल्म मिटता है। शुद्ध शिलाजीत को त्रिफला और शहद के साथ चाटने से प्रमेह मिटता है।
गौमूत्र में शुद्ध शिलाजीत मिलाकर पीने से कुम्भकामला मिटता है। पंचकर्म से शुद्ध होकर अगर मनुष्य गिलोय के क्वाथ से शुद्ध किये हुए शिलाजीत का लम्बे समय तक सेवन करे, तो वातरक्त और कुष्ठ नष्ट हो जाते हैं।
एक माशे शिलाजीत को पीपल और इलायची के साथ लेने से मूत्रकृच्छ और मूत्राघात मिटता है। शुद्ध शिलाजीत 4 माशे, लोह भस्म 2 माशे, सोनामक्खी भस्म 2 माशे- इन तीनों दवा को खरल करके दो-दो रत्ती की गोलियां बना लेनी चाहिए। प्रतिदिन एक गोली सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ खाने से प्रमेह और सफ़ेद धातु का गिरना बन्द हो जाता है।