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ईरान की जगह नामिबिया से भारत आए चीते, आखिर क्यों?

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्मदिन के मौके पर  8 चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में छोड़कर चीता परियोजना का शुभारंभ किया। पीएम ने बटन दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोला और चीतों को कूनो नेशनल पार्क में रिहा किया। चीतों को छोड़ते हुए खुद कैमरे में कैप्चर किया।

देश में करीब 70 साल बाद चीतों की वापसी हुई है। इन चीतों को नामीबिया से लाकर भारत में बसाया गया है। और मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को इनका नया घर बनाया है। जिन चीतों को भारत लाया गया है उनमें पांच मादा और नर हैं। बता दें कि चीतों को भारत में लाने के लिए पहले ईरान से बात चली थी लेकिन किसी शर्त के कारण सहमति नहीं बन पाई थी।

दरअसल बात 1970 के दशक की है जब चीतों के विलुप्‍त होने के बाद भारत सरकार ने इन्‍हें पहले ईरान से लाने पर विचार किया था। ईरानी चीतों के जेनेटिक्स अफ्रीकी चीतों जैसे ही माने जाते है और ईरान इसके लिए राजी भी था लेकिन उसने भारत के सामने एक शर्त रख दी। ईरान ने चीतों के बदले में भारतीय शेर मांगे थे, जिसके चलते भारत ने अपना फैसला बदल दिया था।

ईरान के इनकार के बाद भी भारतीय वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी। साल 2000 में हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया कि हमें सिर्फ चीतों के कुछ सेल्स और टीश्यू मिल जाएं तो हम उसे क्लोन करके चीता बना देंगे। लेकिन इसे लेकर भी ईरान इनकार कर दिया। बाद में साल 2009 में चीता को भारत लाने की कवायद फिर शुरू हुई। और भारत सरकार ने अफ्रीकन चीतों के भारत में सर्वाइवल के लिए अध्ययन करवाया। जहां कमेटी ने कूनो नेशनल पार्क को चीता रिइंट्रोडडक्शन के लिए सही बताया। और फिर सरकार ने चीतों के लिए इस बार भारत ने नामीबिया से संपर्क किया।

जानकारी के अनुसार उस दौरान चीतों को भारत में लाने के लिए नामीबिया के अलावा केन्‍या से भी बात की गई थी लेकिन नामीबिया में चीता फाउंडेशन संस्‍था द्वारा चीता केयर प्रोटेक्‍शन पर काफी काम किया गया है। इसलिए भारत काफी समय से नामीबिया से चीते लाने की कोशिश में लगा हुआ था। और बातचीत के बाद आखिर नामीबिया के साथ सहमति बन गई।

साल 2010 को तत्कालीन वन मंत्री जयराम रमेश चीतों को देखने के लिए नामीबिया पहुंचे थे। और 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रोजेक्ट चीता के लिए 50 करोड़ रुपये जारी किए। जानकारी के अनुसार चीतों के रखरखाव पर प्रति वर्ष 300 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित था। लेकिन कुछ संगठनों ने आपत्ति लगाकर प्रोजेक्ट को कोर्ट में घसीट लिया। जिसके बाद 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि चीतों को लाने की बजाय गुजरात के गिर से शेरों को ट्रांसलोकेट किया जाए।

फिर 2019 में केंद्र सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट चीता से रोक हटा दी। और एक बार फिर भारत सरकार ने फिर से प्रोजेक्ट चीता पर काम शुरू किया। आज पूरे तीन साल बाद 17 सितंबर 2022 को 8 चीतों को विमान से भारत लाया गया जिन्हें अपने जन्मदिन पर आज पीएम मोदी कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा।

जानकारों की माने तो चीतों को लिए कूनो नेशनल पार्क को बेहतर जगह माने जाने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि यहां के जंगलों में इंसानों की आबादी बेहद कम है। डकैतों के डर से यहां के लोग बाहर की ओर जाकर बसे हैं। साथ ही यहां पहले से करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवरों को लाकर बसाया गया है।

वहीं इकोलॉजी चेन से जब कोई जीव विलुप्त होता है तो उसकी जगह दूसरे जीव ले लेते हैं, जिससे इको सिस्टम चलता रहता है।  जंगली कुत्तों और भेड़ियों ने चीतों की जगह ले ली है, लेकिन जब चीतों को दोबारा उस जगह पर छोड़ा जाएगा तो इनमें कॉन्फ्लिक्ट हो सकता है। एशियाई चीते अब सिर्फ ईरान में ही पाए जाते हैं। एशियाई चीता विलुप्तप्राय प्रजातियों में से एक मानी जाती है। यह ईरान के विशाल केंद्रीय रेगिस्तान में बाकी बचे उपयुक्त निवास स्थान में रहता है। साल 2015 तक ईरान में सिर्फ 20 चीता थे  , फिलहाल मिली जानकारी के अनुसार एशियाई चीतों की कुल आबादी करीब 40 से 70 है।

Team Hindustan Coverage

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