20 जुलाई 1969 को अमरीकी अंतरिक्षयात्री नील आर्मस्ट्रांग अपोलो-11 के चंद्रयान ईगल से बाहर निकले और चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बन गए थे।
उन्होंने घोषणा की थी की उनका वह छोटा-सा कदम मानवता की बड़ी छलांग है। चांद पर अमरीकी झंडा फहराने के 50 साल बाद भी उस पल को अमरीकी महानता का यादगार पल माना जाता है। बहुत कम लोगों को मालूम है कि मानवता की उस विजयी छलांग के पीछे आइसलैंड का भी हाथ था। अपोलो 11 मिशन से पहले नासा अंतरिक्षयात्रियों को ऐसी जगह ट्रेनिंग देना चाहता था जहां की धरती चांद की सतह से मिलती-जुलती हो।
इसके लिए आइसलैंड के उत्तरी तट पर हुसाविक को चुना गया था जो 2,300 मछुआरों का एक छोटा शहर था। नासा ने 1965 से 1967 के बीच प्रशिक्षण के लिए 32 अंतरिक्षयात्रियों को यहां भेजा। अब तक जिन 12 लोगों ने चांद पर कदम रखा है उनमें से 9 पहले हुसाविक आए थे, जिनमें आर्मस्ट्रांग भी शामिल थे। चांद पर कदम रखने के 50 साल पूरे होने पर यह शहर उस यादगार पल का जश्न मनाने की तैयारी कर रहा है।
आर्मस्ट्रांग के चांद पर कदम रखने के 22 मिनट बाद अपोलो 11 के दूसरे अंतरिक्षयात्री एल्ड्रिन बाहर निकले थे। चांद के विशाल और निर्जन क्षेत्र को देखकर एल्ड्रिन ने उसे “शानदार एकांत” कहा था, जो आइसलैंड के लिए भी सटीक है।
आर्कटिक के पास दुनिया के सबसे अस्थिर टेक्नोटिक प्लेटों पर बसा आइसलैंड एक विशाल प्रयोगशाला की तरह है। गर्म पानी के कुदरती झरने और नॉर्दर्न लाइट्स याद दिलाते हैं कि इंसान ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं।आइसलैंड का 80 फीसदी इलाका निर्जन है और 60 फीसदी से ज़्यादा हिस्सा लावा के रेगिस्तान और ग्लेशियर से ढका है।
एक्सप्लोरेशन म्यूजियम के निदेशक हैं।वह कहते हैं। आइसलैंड बिल्कुल चांद की तरह दिखता है। यहां दूसरी दुनिया जैसे नजारे दिखते हैं। ख़ासकर गर्मियों में जब उत्तरी आर्कटिक रेगिस्तान में बर्फ कम गिरती है।अंतरिक्षयात्रियों को यहां भेजने की सिर्फ़ यही एक वजह नहीं थी। इसका कारण जियोलॉजी था।नासा चाहता था कि अंतरिक्षयात्री चांद के पत्थरों के सबसे बढ़िया नमूना लकर आएं, इसीलिए उन्हें प्रशिक्षण के लिए ऐसी जगह भेजा गया जहां पत्थरों की संरचना चांद की सतह से मिलती-जुलती है।